सुप्रीम कोर्ट में राकेश किशोर ने बी.आर. गवई के खिलाफ जूते से हमला किया

सुप्रीम कोर्ट में राकेश किशोर ने बी.आर. गवई के खिलाफ जूते से हमला किया अक्तू॰, 6 2025

6 अक्टूबर 2025 को सुबह 11:35 बजे, सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट नंबर 1 में एक आश्चर्यजनक घटना घटी, जब 71‑साल के राकेश किशोर, जो दिल्ली बार काउंसिल के नंबर D/1647/2009 के तहत पंजीकृत वकील हैं, ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, मुख्य न्यायाधीश पर अपने खेल‑जूते को फेंकने की कोशिश की। वह कोर्ट के डेस्‍क के पास आए, जूता उतारने की कोशिश करते हुए “सनातन का अपमान नहीं सहेंगे” चिल्लाए, लेकिन सुरक्षा गार्डों ने उन्हें रोकते ही उन्हें ज़ोर से बाहर खीँचा।

पृष्ठभूमि और कारण

इस हमले का सीधा संबंध पिछले महीने में गवई जी के एक बयान से है। मध्य प्रदेश के खूजूरा में 7 फ़ीट की मूर्ति‑भंग की गई विष्णु की मूर्ति के पुनर्स्थापन से जुड़े मुक़दमे के दौरान, बी.आर. गवई ने याचिका को “जनसंपर्क‑हित कार्यवाही” कहकर खारिज कर दिया और “इच्छा हो तो देवता से पूछें” जैसा सुझाव दिया, जिससे सोशल मीडिया पर उलट‑फेर की बौछार हुई। कई हिंदू समूहों ने इसे धर्म‑अपमान माना और विरोध का स्वर बढ़ा।

घटनाक्रम का विस्तार

जैसे ही राकेश किशोर ने जूता उठाया, सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत हस्तक्षेप किया। कोर्ट के भीतर मौजूद के. विनोद चंद्रन, सह न्यायाधीश ने स्थिति को शांत रखने की कोशिश की, जबकि गवई जी ने “इसे नजरअंदाज करो, हम नहीं बेतरतीब होते” कह कर अपने समन्वयन को दर्शाया। उन्होंने तुरंत सत्र को जारी रखने की आज्ञा दी और वकीलों को अपने दलील जारी रखने को कहा।

तुरंत प्रतिक्रिया

इस घटना के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने राकेश किशोर के खिलाफ तत्काल निलंबन का आदेश जारी किया। BCI के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा ने एक पत्र में कहा कि उनका व्यवहार “व्यावसायिक आचार संहिता” और “न्यायालय की गरिमा” के विपरीत है। इस निलंबन में कहा गया है कि वह किसी भी कोर्ट, ट्रिब्यूनल या कानूनी प्राधिकरण में उपस्थित नहीं हो पाएंगे।

दिल्ली पुलिस ने भी महज कुछ मिनटों में किशोर को कोर्ट परिसर से बाहर निकाल दिया, पर उन्होंने आगे की जाँच का हवाला दिया।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएँ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाद में गवई जी से फोन पर बात करते हुए इस घटना को “सम्पूर्ण भारतीयों को गुस्सा दिलाने वाला” कहा और इसे “घिनौना कृत्य” बताया। वहीं विपक्षी नेता राहुल गांधी ने “यह न्यायपालिका और संविधान की गरिमा पर हमला है” कहा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खर्गे ने इस घटना को सरकारी नीतियों की “हिंसा‑और‑आतंक की लत” के रूप में उजागर किया।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जो उत्तर बंगाल में बाढ़‑पीड़ित क्षेत्रों में थीं, ने इसे “संविधान पर हमला” कहा और गवई जी के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया।

प्रभाव और आगे की संभावना

प्रभाव और आगे की संभावना

सुप्रीम कोर्ट की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाने वाले कई कवरेज प्रकाशित हो रहे हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की घटनाएँ “एकत्रित सुरक्षा गार्डों की संख्या और प्रशिक्षण” में बदलाव की मांग करती हैं। राजनीतिक वर्ग में भी इस मामले को “धार्मिक तनाव का नया स्तर” कहा जा रहा है, जिससे भविष्य में न्यायालयों में ऐसी घटनाओं की संभावना पर चर्चा बढ़ेगी।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कहा है कि निलंबन का निर्णय “स्थायी नहीं” है और आने वाले महीनों में एक सुनवाई होगी, जहाँ राकेश किशोर को अपने व्यवहार का जवाब देना पड़ेगा। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना के बाद कोर्ट सुरक्षा अधिसंधि की “समीक्षा” का आदेश दिया है।

भविष्य की दिशा

  • सुरक्षा प्रोटोकॉल में नई तकनीकी (सीसीटीवी, बायोमेट्रिक एक्सेस) को लागू करना।
  • वकीलों के लिए “व्यावसायिक नैतिकता” पर पुनः प्रशिक्षण कार्यशालाएँ आयोजित करना।
  • धार्मिक‑सेंसिटिव मामलों में न्यायालयों को सामाजिक‑परावर्तक मार्गदर्शन प्रदान करना।
  • बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा निलंबन के बाद पुनरावलोकन प्रक्रिया को तेज़ करना।

पृष्ठभूमि की विस्तृत जानकारी

सी.जे.आई. गवई भारत के तीसरे प्रमुख न्यायाधीश के रूप में 2024 में नियुक्त हुए और उनका प्रोफ़ाइल राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर “सच्ची धर्मनिरपेक्षता” के लिए सराहना पाता रहा है। 2025 के शुरुआती महीनों में उन्होंने कई सामाजिक‑धार्मिक मामलों में तेज़ी से निर्णय दिए, जिससे उनके बयान अक्सर सोशल मीडिया पर तीखा विश्लेषण का बिंदु बनते।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया, 1953 में स्थापित, भारतीय वकीलों की पेशेवर नैतिकता और व्यवहार को नियंत्रित करने वाला मुख्य नियामक है। इसकी प्रमुख जिम्मेदारियों में “अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई” और “बार रजिस्टर में संशोधन” शामिल हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या इस घटना से सुप्रीम कोर्ट की सुरक्षा नीति बदलने की संभावना है?

विशेषज्ञों ने संकेत दिया है कि अब कोर्ट के प्रवेश बिंदुओं पर बायोमैट्रिक स्कैन, अतिरिक्त सुरक्षा गार्ड और रियल‑टाइम वीडियो निगरानी को अनिवार्य किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस घटना के बाद सुरक्षा नियमों की व्यापक समीक्षा का आदेश दिया है।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने निलंबन कितनी देर तक जारी रखा है?

वर्तमान में निलंबन “अस्थायी” है और अगले तीन महीनों के भीतर एक अनुशासनात्मक सुनवाई होगी, जहाँ वकील को अपना पक्ष रखने का अवसर मिलेगा।

गवई न्यायाधीश ने इस घटना के बाद क्या कहा?

गवई ने कहा कि “हम इससे प्रभावित नहीं होते, काम का रास्ता वही है” और सभी को कोर्ट के कार्य को जारी रखने की अपील की। उन्होंने कोई व्यक्तिगत प्रतिक्रिया नहीं दी।

क्या इस हमले का कोई धार्मिक या राजनीतिक लक्ष्य था?

राकेश किशोर ने “सनातन का अपमान नहीं सहेंगे” चिल्लाते हुए यह दर्शाया कि उनका हरकत गवई के “देवता से पूछो” वाले बयान के प्रति वैरता से प्रेरित थी, जिससे धार्मिक भावनाओं को लेकर तनाव बढ़ा।

इस घटना से भारत में न्यायपालिका की सार्वजनिक छवि पर क्या असर पड़ेगा?

अधिकतर लोग गवई की शांति से प्रतिक्रिया को सराह रहे हैं, पर साथ ही सुरक्षा में चूक पर सवाल उठ रहे हैं। भविष्य में न्यायिक संस्थानों के प्रति भरोसा बचाए रखने के लिए पारदर्शी सुधारों की मांग तेज़ होगी।

7 टिप्पणि

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    KRISHNAMURTHY R

    अक्तूबर 6, 2025 AT 21:40

    राकेश किशोर की कार्रवाई को समझा जा सकता है, लेकिन न्यायालय की गरिमा को भी पहचाना जाना चाहिए। उन्होंने "सनातन का अपमान नहीं सहेंगे" कहा, जो उनके भावनात्मक तनाव को दर्शाता है 😊। कानूनी पेशेवरों को इस प्रकार के आक्रोश को ठंडे दिमाग से संभालना चाहिए, क्योंकि न्याय के ढांचे में एकजुटता आवश्यक है। सुरक्षा गार्डों ने त्वरित कार्रवाई की, जिससे किसी भी संभावित हिंसा को रोका गया। अंत में, यह घटना वकील संघों को उनके आचार संहिता पर पुनर्विचार करने की प्रेरणा दे सकती है।

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    priyanka k

    अक्तूबर 16, 2025 AT 21:40

    वास्तव में, यह एक "सामान्य" वाक्य है, जो न्याय के मंदिर में अनपेक्षित नाटक को उजागर करता है।

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    sharmila sharmila

    अक्तूबर 26, 2025 AT 21:40

    मैं देखी थी कि राकेश जी ने कोर्ट में जूता उछालने की कोशिश करी थी, पर सुरक्षा कर्मी जल्दी ही उन्हें रोक ने पाये। अगर एसी स्थिति बार बार हो तो कोर्ट की इमेज को नुक्सान पहुंच सकता है। मेरे ख्याल से ये सब बकवास है पर लोग इमोशन में फँस जाते हैं।

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    Shivansh Chawla

    नवंबर 5, 2025 AT 21:40

    देशभक्त की भावना को समझते हुए कहना पड़ता है कि ऐसी "बेमानी" हरकतें हमारे राष्ट्रीय एकजुटता को कमजोर करती हैं। अदालत को राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी देखना चाहिए, क्योंकि धर्म के मुद्दे बग़ैर विचार के ट्रैजेडी बना देते हैं। इसलिए, संस्थागत मजबूती और कठोर विधिक भाषा हमारे लिए अनिवार्य है।

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    Sweta Agarwal

    नवंबर 15, 2025 AT 21:40

    बार को सस्पेंड करने का फैसला तो ठीक है, लेकिन कोर्ट में जूते फेंकना तो कोई नई बात नहीं, है ना? 😏

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    Sameer Kumar

    नवंबर 25, 2025 AT 21:40

    इस घटना ने भारतीय न्यायिक प्रणाली की संवेदनशीलता को उजागर किया है। जब एक वकील न्यायालय के समान कक्ष में अशांति पैदा करता है तो सार्वजनिक विश्वास को चोट लगती है। सुप्रीम कोर्ट का उद्देश्य विधि के प्रकाश को हर नागरिक तक पहुंचाना है। सुरक्षा व्यवस्था का अभाव कभी भी ऐसी घटना को रोका नहीं सकता। लेकिन उचित प्रशिक्षण और तकनीकी उन्नति से भविष्य में इस प्रकार की हिंसा को टाला जा सकता है। बायोमैट्रिक स्कैन और सीसीटीवी का विस्तार एक व्यावहारिक समाधान हो सकता है। साथ ही, वकीलों को नैतिकता पर पुनः प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। बार काउंसिल को इस बार निलंबन को एक उदाहरण के रूप में रखना चाहिए। व्यक्तिगत भावनाओं को पेशेवर जिम्मेदारियों से अलग रखना आवश्यक है। न्यायपालिका के व्यक्तियों को सार्वजनिक धारा में अपने कर्तव्यों को समझना चाहिए। धर्म और न्याय के बीच संतुलन कायम रखना संस्थानों की प्राथमिकता होनी चाहिए। जनता की अपेक्षा है कि न्यायालय अल्पसंख्यकों की रक्षा करे। इसलिए, इस घटना को केवल एक व्यक्तिगत विफलता नहीं, बल्कि प्रणालीगत समस्या के रूप में देखना चाहिए। सुधारात्मक कदम उठाने में शीघ्रता दिखानी होगी। अन्यथा, भविष्य में समान घटनाएं दोहराई जा सकती हैं। अंत में, यह सब मिलकर न्याय के मूल उद्देश्य को सुदृढ़ करेगा।

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    naman sharma

    दिसंबर 5, 2025 AT 21:40

    उपर्युक्त विश्लेषण को देखते हुए यह संभावना नहीं छोड़नी चाहिए कि कुछ गुप्त हित समूह इस विफलता को अपने लाभ के लिए बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत कर रहे हैं। इस तरह के तंत्र के पीछे अक्सर राजनीतिक एजेंडा छिपा होता है, जो न्यायिक संस्थाओं को अस्थिर करने की कोशिश करता है। इसलिए, व्यापक जांच और पारदर्शी रिपोर्टिंग अनिवार्य होनी चाहिए।

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