संविधान के समर्थक हैं तो मनुस्मृति की प्रतियों को जलाएं: प्रकाश अंबेडकर ने नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी को दी चुनौती
जुल॰, 13 2024मनुस्मृति: विवाद और चुनौतियां
मनुस्मृति, जिसे हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण शास्त्र के रूप में जाना जाता है, हमेशा से विवादों का केंद्र रही है। इसमें निचली जातियों और महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण प्रावधान हैं, जिनके चलते यह संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत मानी जाती है।
प्रकाश अंबेडकर, जो प्रसिद्ध समाज सुधारक बी.आर. अंबेडकर के पोते हैं, ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी से यह अपील की है कि वे सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति की प्रतियों को जलाएं, ताकि यह साबित हो सके कि वे सचमुच संविधान के सिद्धांतों के प्रति वफादार हैं।
प्रकाश अंबेडकर का तर्क
प्रकाश अंबेडकर का मानना है कि वर्तमान समय में लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण और हिंदू राष्ट्रवाद का उभार हो रहा है। वे कहते हैं कि मनुस्मृति का प्रतीकात्मक जलाना भारत में जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। उनके अनुसार, यह कदम न सिर्फ संविधान के पक्ष में एक सशक्त संदेश देगा, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता की ओर भी एक संकेत होगा।
अंबेडकर के इस आह्वान में उनका यह तर्क स्पष्ट है कि भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही अपने-अपने स्तर पर जनता को यह भरोसा दिलाएं कि वे संविधान की मूल अवधारणाओं के साथ पूरी तरह खड़ी हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
प्रकाश अंबेडकर की इस अपील पर विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं की प्रतिक्रियाएं मिलनी शुरू हो गई हैं। भाजपा के कुछ नेताओं ने इसे एक राजनीतिक स्टंट और हिंदू धर्म के खिलाफ साजिश करार दिया है। वहीं, कांग्रेस के भीतर भी इस अपील को लेकर मिलीजुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं।
इससे इतर, समाज के विभिन्न वर्गों ने अंबेडकर के इस प्रयत्न की सराहना की है। विभिन्न सामाजिक संगठनों और जाति आधारित संगठनों ने इसे एक साहसिक कदम बताते हुए समर्थन किया है। कई लोगों का मानना है कि इससे जाति उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई को एक नई दिशा मिल सकती है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत में जाति व्यवस्था का इतिहास बहुत पुराना है और यह सामाजिक संरचना के गहरे में बसी हुई है। बाबासाहेब बी.आर. अंबेडकर ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा इसे समाप्त करने और समानता स्थापित करने में लगाया था। उन्होंने संविधान सभा में बैठकर जाति व्यवस्था के खिलाफ कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए, जिनका परिणाम आज भी देखा जा सकता है।
मनुस्मृति को इस मुद्दे का एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है, जिसके कारण बी.आर. अंबेडकर ने स्वयं भी इसके विरोध में आवाज उठाई थी। प्रकाश अंबेडकर का यह कदम उनके दादा के आदर्शों और सिद्धांतों को आगे बढ़ाने का एक प्रयास है।
आगे की राह
यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी प्रकाश अंबेडकर की चुनौती को स्वीकार करते हैं और मनुस्मृति की प्रतियों को जलाते हैं, तो यह भारत में जाति उत्पीड़न और भेदभाव के खिलाफ एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। इससे देश में सामाजिक समानता और न्याय की दिशा में एक नई शुरुआत हो सकती है।
हालांकि, यह स्पष्ट है कि इस तरह के प्रतीकात्मक कदम मात्र से ही समाजिक परिवर्तन संभव नहीं होगा। इसके लिए सरकार और समाज को मिलकर लंबे समय तक मेहनत करनी होगी। जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई को कानून व्यवस्था के साथ-साथ मानसिकता में बदलाव की भी जरूरत है।
कुल मिलाकर, प्रकाश अंबेडकर की यह अपील एक बड़े सामाजिक मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करने का एक प्रयास है। इसके परिणामस्वरूप क्या सचमुच में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया जाएगा या नहीं, यह तो समय ही बताएगा। परन्तु इस मुद्दे पर बहस ने निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण चर्चा की शुरुआत कर दी है।
सामाजिक और कानूनी आयाम
मनुस्मृति के भेदभावपूर्ण प्रावधानों के खिलाफ कानून सम्मत लड़ाई काफी पुरानी है। बी.आर. अंबेडकर ने संविधान निर्माण के दौरान ही इसे समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए थे। उनका मानना था कि संविधान में निहित समानता और न्याय के सिद्धांतों को तभी पूरी तरह से लागू किया जा सकता है, जब जाति व्यवस्था को समूल नष्ट किया जाए।
आज भी, विभिन्न संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा कई विधायिक और न्यायिक प्रयास चल रहे हैं, जिनका उद्देश्य समाज में व्याप्त जाति भेदभाव को कम करना है। प्रकाश अंबेडकर का यह कदम उन प्रयासों का एक विस्तार माना जा सकता है।
मीडिया में प्रतिक्रिया
मीडिया ने इस मुद्दे पर बढ़-चढ़ कर रिपोर्टिंग की है। विभिन्न न्यूज़ चैनलों और अखबारों ने इसे प्रमुखता दी है। यह चर्चा न सिर्फ भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियों में रही है। सोशल मीडिया पर भी इस विषय पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
कुछ लोगों ने इसे एक साहसिक कदम बताते हुए समर्थन किया है तो कुछ लोगों ने इसे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला कदम बताया है। परन्तु, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मुद्दे ने देश में एक बार फिर से जाति भेदभाव पर बहस को जीवित कर दिया है, जो कि एक सकारात्मक संकेत है।
इस प्रकार, प्रकाश अंबेडकर की यह अपील भारतीय समाज में जाति के मुद्दों पर विचार-विमर्श और बहस को नए सिरे से संजीवनी देने का काम कर रही है। यह देखा जाएगा कि इस पहल का राजनीतिक और समाजिक परिणाम क्या होता है और इससे समाज में कितना सकारात्मक परिवर्तन आता है।