Karnataka चुनाव 2023: BJP कितना समय तक Modi ब्रांड पर निर्भर रह पाएगा?

Karnataka चुनाव 2023: BJP कितना समय तक Modi ब्रांड पर निर्भर रह पाएगा? सित॰, 26 2025

Karnataka 2023 विधानसभा चुनाव का परिणाम

राज्य स्तर पर भाजपा की हार ने पूरे भारत में हलचल मचा दी है। 2023 के इस चुनाव में Karnataka चुनाव की गणनाओं में भाजपा ने पहले की 104 सीटों से गिरकर सिर्फ 66 ही रख पाई, जबकि कांग्रेस ने 135 सीटों के साथ अपने 1989 के बाद सबसे बड़े जीत का दर्जा हासिल किया। कांग्रेस का वोट‑शेयर 42.9% रहा, जबकि भाजपा का लगभग 36% बना रहा—मतदान में Modi का आकर्षण अभी भी मौजूद है, पर सीटों में वह उतना असर नहीं दिखा पाया।

दुर्लभ बात यह है कि गठबंधन की ताकत केवल वोटों में नहीं, बल्कि सीटों में बदलने में है। कुल 31 जिलों में से 24 जिलों में भाजपा ने एक भी सीट नहीं जीत पाई, जबकि कुछ जिलों में केवल एक-एक सीट ही रख पाई। इससे साफ़ जाहिर होता है कि Modi‑के नाम पर भरोसा करने वाली रणनीति स्थानीय मुद्दों से जुड़ने में असफल रही।

  • CT रवि (किर्क्पूरत), सोमन (हैदराबाद), आर. अशोक (बंगलुरु), विष्वेश्वर कागरी (हैदराबाद), मुरुगेश नीरानी (बिलासपुर) जैसे प्रमुख नेता प्रथम पक्ष में हार गए।
  • मुंबई‑कर्नाटक क्षेत्र, जहाँ लिंगायत मतपत्र सामान्यतः भाजपा का भरोसा रहता था, वहाँ कांग्रेस ने 33 में से 50 सीटें जीत लीं।
  • पुराने मैसूर क्षेत्र में भी कांग्रेस ने 43 में से 42% वोट शेयर के साथ जीत हासिल की, जबकि जेडी(एस) की पकड़ बिगड़ गई।

लिंगायत वोट बैंक का शिफ्ट सबसे बड़ी सरप्राइज़ है। 69 लिंगायत‑बहुल विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस ने 45 जीतें, जबकि भाजपा सिर्फ 20 ही जीत पाई। यह बदलाव सिर्फ Modi की लोकप्रियता के चलते नहीं हुआ; यह बताता है कि मतदाता स्थानीय प्रशासन, विकास कार्यों और उम्मीदवार की उपलब्धियों को अधिक महत्व दे रहे हैं।

Modi‑केन्द्रित रणनीति पर प्रतिच्छाया

भाजपा ने पिछले पाँच वर्षों में Modi‑के ‘छवि‑परिचालन’ को अपनी सबसे बड़ी ताकत माना। इस बार के परिणाम ने स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रीय स्तर की चमक राज्य‑स्तर की चुनौतियों को हमेशा जीत नहीं दिला सकती। जनता ने कहा कि केवल प्रधानमंत्री की छवि से निर्माणात्मक बदलाव नहीं आया, जब तक जमीन‑स्तर की समस्याएँ—सड़कें, जल आपूर्ति, शिक्षा और रोज़गार—का समाधान नहीं होता, वोटों को आकर्षित करना मुश्किल है।

दक्षिणा कन्नड़ में भाजपा ने एक छोटे प्रयोग के रूप में सीनियर नेता एस. एंगलर को नई चेहरें भगीरथी मुरुल्यादि से बदल दिया और मतभेद में हल्की बढ़ोतरी देखी। यह छोटे‑छोटे सफलताएँ यह संकेत देती हैं कि सही उम्मीदवार चुनना और स्थानीय गठबंधन बनाना पार्टी को बड़े पैमाने पर पुनर्जीवित कर सकता है। परन्तु ऐसा सिर्फ़ एक-एक उदाहरण नहीं, बल्कि एक सुसंगत रणनीति बननी चाहिए।

भाजपा के लिए अब दो रास्ते हैं: या तो Modi‑के नाम पर भरोसा करके राष्ट्रीय मुद्दों को दोहराते रहना, या फिर राज्य‑स्तर के नेता विकसित करके, स्थानीय समस्याओं को प्राथमिकता देकर, पार्टी के आधार को घनिष्ठ बनाना। अगर दूसरी राह नहीं अपनाई गई, तो अगली बार के चुनावों में पार्टी को और भी गहरी हार का सामना करना पड़ सकता है।

वर्तमान में, पार्टी का स्थिर मतदान प्रतिशत दर्शाता है कि मोदी की लोकप्रियता अभी भी नकारात्मक नहीं हुई, पर वह नई सीटें नहीं बना पा रही। वोट‑शेयर में स्थिरता को दरअसल एक जोखिम मान सकते हैं—बिना विस्तार के, भविष्य में पार्टी को धकेलने की शक्ति कम हो सकती है।

भाजपा को अब यह समझना होगा कि राष्ट्रीय मंच पर भी सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक विविधताओं को देखते हुए, ‘Modi‑ब्रांड’ को स्थानीय नेताओं की क्षमताओं के साथ मिलाकर ही स्थायी जीत संभव है। यह सीख केवल Karnataka तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश के विभिन्न राज्य‑स्तर के चुनावों में लागू होगी।