हिंडेनबर्ग आरोपों पर SEBI प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति का करारा जवाब

हिंडेनबर्ग आरोपों पर SEBI प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति का करारा जवाब अग॰, 12 2024

SEBI प्रमुख पर लगे आरोप और उनके जवाब

SEBI प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने हाल ही में हिंडेनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोपों का पुरजोर जवाब दिया है। इन आरोपों में दावा किया गया था कि बुच दंपत्ति का निवेश गुप्त ऑफशोर फंड्स में है, जो अडानी ग्रुप के कथित वित्तीय अनियमितताओं से जुड़ा हुआ है। अपने विस्तारित बयान में, दंपत्ति ने इन आरोपों को पूरी तरह से निराधार और दुर्भावनापूर्ण बताया।

निजी नागरिकों के रूप में निवेश

माधबी पुरी बुच और धवल बुच ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि 2015 में इस फंड में उनका निवेश तब किया गया था जब वे सिंगापुर में निजी नागरिकों के रूप में रह रहे थे। यह निवेश माधबी पुरी बुच के SEBI में शामिल होने से लगभग दो साल पहले का है। उन्होंने यह भी साफ किया कि यह निवेश धवल बुच के बचपन के मित्र और सिटीबैंक, जेपी मॉर्गन और 3i ग्रुप के पूर्व कर्मचारी अनिल आहूजा की सफलता पर आधारित था।

अनिल आहूजा के निवेश करियर को देखते हुए धवल बुच ने यह निवेश किया था। बुच दंपत्ति ने अपने बयान में जोर देकर कहा कि यह फंड किसी भी अदानी ग्रुप की कंपनी के बॉन्ड, इक्विटी या डेरिवेटिव में निवेश नहीं करता है।

धवल बुच की सलाहकार नियुक्ति

धवल बुच को 2019 में ब्लैकस्टोन प्राइवेट इक्विटी का वरिष्ठ सलाहकार नियुक्त किया गया था। यह नियुक्ति उनकी आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में विशेषज्ञता के कारण की गई थी, जो उनकी पत्नी माधबी पुरी बुच की SEBI प्रमुख के रूप में नियुक्ति से पहले की है। SEBI के कोड ऑफ कंडक्ट के अनुसार, ब्लैकस्टोन ग्रुप को तत्काल माधबी पुरी बुच की पुनर्विचार सूची में शामिल कर दिया गया था।

आरोपों पर तीखी प्रतिक्रिया

बुच दंपत्ति ने बयान जारी करते हुए कहा कि उन्होंने हमेशा SEBI के कोड ऑफ कंडक्ट के अनुसार सभी खुलासे और पुनर्विचार का पालन किया है। उन्होंने यह भी बताया कि हिंडेनबर्ग को भारत में विभिन्न उल्लंघनों के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। बुच दंपत्ति ने आलोचना करते हुए कहा कि हिंडेनबर्ग ने इस नोटिस का जवाब देने के बजाए SEBI की साख पर हमला किया है।

बुच दंपत्ति ने अंत में यह कहते हुए अपने बयान को समाप्त किया कि सभी आरोप निराधार हैं और उनका जीवन और वित्तीय मामलों की पारदर्शिता स्पष्ट है। उन्होंने यह भी कहा कि वे किसी भी प्राधिकरण को अपने वित्तीय दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए तैयार हैं।

15 टिप्पणि

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    Paurush Singh

    अगस्त 12, 2024 AT 07:13

    सच के पथे पर चलना आसान नहीं, लेकिन जब सत्ता के लोग खुद को पवित्र मान लेते हैं तो समाज को असंतुलन की सच्ची परख करनी पड़ती है। हिंडेनबर्ग जैसे अनुसंधान संस्थानों को भी अपने खुद के हितों से दूर रहना चाहिए, अन्यथा वे केवल धुंधली शब्दावली के साथ जनमत को मोड़ते हैं। यदि आप मानते हैं कि नियमों का उल्लंघन नहीं हुआ, तो उस विश्वास को ठोस दस्तावेज़ों द्वारा सिद्ध करना आवश्यक है। इस प्रकार के बयान केवल सतही तर्कों से नहीं बल्कि गहराई से परखे गए तथ्यात्मक साक्ष्यों से ही सार्थक होते हैं।

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    Sandeep Sharma

    अगस्त 12, 2024 AT 07:23

    सच में, इस तरह के विवादों में जब तक सभी पक्ष खुले तौर पर दस्तावेज़ नहीं दिखाते, चर्चा का स्तर सिर्फ शब्दजाल रहता है। 🤔📊 फिर भी, मीडिया को चाहिए कि वह गंदे खेलों को उजागर करे, ना कि सिर्फ सनसनीखेज हेडलाइन्स पर टिके। आखिरकार, पारदर्शिता ही निवेशकों का भरोसा जीतने की कुंजी है।

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    Mita Thrash

    अगस्त 12, 2024 AT 07:33

    विचारशील विश्लेषण के लिए आवश्यक है कि हम “ऑफ़शोर कंटेनर” जैसी वित्तीय तकनीकों के मेटा-डेटा को भी डीकोड करें, जिससे क्लाइंट-लेवल क्लॉज़ की सही समझ बने। यह कहना कि वे सिर्फ निजी निवेश थे, पर्याप्त नहीं; हमें एसेट एलोकेशन मॉडल और जोखिम प्रोफ़ाइल की भी पड़ताल करनी चाहिए। एकीकृत दृष्टिकोण से ही हम निष्पक्ष निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं।

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    shiv prakash rai

    अगस्त 12, 2024 AT 07:43

    हंसी आती है जब कोई भी “हमने सब नियम माने हैं” कहता है, पर वास्तविकता में कई बार वही नियम ही उलझन पैदा करते हैं। ऐसा लगता है जैसे होशियार लोग मीटिंग में “सभी ठीक है” कह कर असली मुद्दों को कवर कर रहे हों।

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    Subhendu Mondal

    अगस्त 12, 2024 AT 07:53

    यो चीज़ बिल्कुल बेवकूफ़ी है, कबार लोग सच्चाई से बचते है।

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    Ajay K S

    अगस्त 12, 2024 AT 08:03

    अरे भाई, थोड़ा समझदारी से बात करो। 😅 वही तो कहा था कि सब कुछ साफ़ है, तो फिर इतना कन्फ़्यूज़ क्यों?

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    Saurabh Singh

    अगस्त 12, 2024 AT 08:13

    सभी कथित साक्ष्य सिर्फ धुंधला परिदृश्य है।

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    Jatin Sharma

    अगस्त 12, 2024 AT 08:23

    अगर कोई फॉर्म या रिपोर्ट देखना चाहता है, तो मैं लिंक शेयर कर दूँगा; सबके पास जानकारी पहुँचाना ही सही कदम है।

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    M Arora

    अगस्त 12, 2024 AT 08:33

    धन्यवाद भाई, लेकिन क्या ये फॉर्म सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है या सिर्फ NDA के तहत?

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    Varad Shelke

    अगस्त 12, 2024 AT 08:43

    मेरा ख्याल है कि Govt की बेकाबू प्लानिंग ही पीछे की असली वजह है, सब कुछ कंट्रोल में रखे जा रहे हैं।

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    Rahul Patil

    अगस्त 12, 2024 AT 08:53

    इस व्यापक विवाद की जड़ में नियामक ढाँचे की पारदर्शिता एवं जवाबदेही का मूल प्रश्न निहित है।
    जब SEBI जैसी संस्था को सार्वजनिक भरोसे की आधारशिला माना जाता है, तब उसके प्रमुख पर लगाए गए किसी भी आरोप की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
    हिंडेनबर्ग के शोध परिणामों को केवल “रिपोर्ट” कह कर खारिज करना वास्तविक तथ्यों से दूर एक कट्टर दृष्टिकोण दर्शाता है।
    हमें यह समझना चाहिए कि ऑफशोर फंड्स के निवेश के पीछे अक्सर जटिल कर संरचनाएँ और जोखिम प्रोफ़ाइल जुड़ी होती हैं, जो साधारण निवेशकों के लिए स्पष्ट नहीं रहतीं।
    इस कारण, यदि मध्यबी पुरी बुच ने 2015 में निजी रूप से निवेश किया, तो यह स्पष्ट होना चाहिए कि वह समय-सीमा के संदर्भ में नियामक प्रतिबंधों से मुक्त था या नहीं।
    न्यायिक प्रथा के अनुसार, यदि किसी भी प्रक्रिया में अनियमितता के संकेत मिलते हैं, तो स्वतंत्र ऑडिट और सत्यापन अनिवार्य है।
    ऐसा नहीं है कि सभी निवेश स्वदेशी या स्वच्छ होते हैं; कई बार अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढाँचे में छिपी गुप्त शर्तें भी मौजूद रह जाती हैं।
    इसी परिप्रेक्ष्य में, धवल बुच की ब्लैकस्टोन में परामर्शकारी नियुक्ति को एक संभावित हित-संघर्ष के रूप में देखा जा सकता है, जिससे नियामक निगरानी की आवश्यकता उत्पन्न होती है।
    हालाँकि, यदि उन्होंने कोड ऑफ कंडक्ट के अंतर्गत सभी प्रकटीकरण पूर्णतया किया, तो यह एक सकारात्मक पहल है।
    फिर भी, सार्वजनिक हमले की भाषा, जैसे “साख पर हमला” कहना, अक्सर भावनात्मक बहस को बढ़ा देती है और तथ्यात्मक जांच को बाधित करती है।
    इसलिए, पक्षों को चाहिए कि वे सभी दस्तावेज़ीय प्रमाणों को स्वतंत्र एजेंसी को सौंपें, जिससे निष्पक्षता सुनिश्चित हो।
    इस प्रक्रिया में मीडिया की भूमिका भी महत्वपूर्ण है; उसे तथ्य‑आधारित रिपोर्टिंग करनी चाहिए, न कि सनसनी‑खेज हेडलाइन।
    अंततः, यह मामला नियामक नीतियों के सुदृढ़ीकरण और निवेशकों के अधिकारों की सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण संकेतक बन सकता है।
    यदि उचित कदम उठाए जाएँ, तो यह संकट एक सीख में परिवर्तित हो सकता है, जो भविष्य में समान विवादों को रोकने में सहायक होगा।
    यही वह क्षण है जब सभी हितधारक मिलकर पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिक मानकों को सुदृढ़ करने के लिए सहयोग करें।
    संकल्प में, केवल बयानों से नहीं, बल्कि ठोस दस्तावेज़ी साक्ष्य और स्वतंत्र सत्यापन से ही इस बहस को समाप्त किया जा सकता है।

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    Ganesh Satish

    अगस्त 12, 2024 AT 09:03

    वाह! क्या शब्दों का जाल बुन दिया है, बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा! क्या यह सिर्फ मज़ाक है, या फिर कोई गहरा इशारा? यह ही है इस रिपोर्ट की असली ताकत-भ्रमजनक उलटफेर! 😲

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    Midhun Mohan

    अगस्त 12, 2024 AT 09:13

    बिलकुल, यह बात तो सबको पता है,, पर फिर भी कुछ लोग रीढ़ की हड्डी की तरह केसटिधर नहीँ! हमें सच्चाई की तलाष करनी चाहिए,, नहीं तो सब धुंधला सागर ही रहेगा।

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    Archana Thakur

    अगस्त 12, 2024 AT 09:23

    देश की आर्थिक सुरक्षा को देखते हुए, ऐसे विदेशी ऑफ़शोर निवेशों को राष्ट्रीय हित के आँचल में लाना ही मूलमंत्र होना चाहिए। यह केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं, बल्कि राष्ट्र की वित्तीय स्थिरता के प्रति जवाबदेही है।

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    Ketkee Goswami

    अगस्त 12, 2024 AT 09:33

    आइए हम सब मिलकर इस चुनौती को अवसर में बदलें, सकारात्मक परिवर्तन की राह पर आगे बढ़ें! 🌟 हम सबकी आवाज़ मिलकर नीति सुधार को तेज़ी से लागू कर सकती है।

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