Baaghi 4 पर CBFC की कड़ी कैंची: A सर्टिफिकेट के बावजूद 23 कट, 6 मिनट छोटी हुई फिल्म
सित॰, 5 2025
ए सर्टिफिकेट मिल चुका, फिर भी 23 कट—यही है इस वक्त टाइगर श्रॉफ की बागी 4 पर सेंसर बोर्ड (CBFC) की तस्वीर। फिल्म को थिएटर रिलीज़ से पहले विजुअल और ऑडियो—दोनों स्तर पर भारी संपादन से गुजरना पड़ा। नतीजा: 2 घंटे 43 मिनट के मूल संस्करण से 6 मिनट काटकर फाइनल रनटाइम 2 घंटे 37 मिनट (करीब 157.5 मिनट) तय हुआ।
CBFC के 23 कट: किन दृश्यों पर कैंची चली
डायरेक्टर ए. हर्षा की इस एक्शन थ्रिलर में टाइगर श्रॉफ के साथ संजय दत्त, हरनाज़ संधू और सोनम बाजवा प्रमुख भूमिकाओं में हैं। सेंसर की एग्जामिनिंग कमेटी ने धार्मिक संदर्भ, ग्राफिक हिंसा, न्यूडिटी और अपशब्दों से जुड़े हिस्सों पर सख्त रुख दिखाया। बोर्ड ने जहां-जहां ‘लोक-धार्मिक संवेदनशीलता’ और ‘अत्यधिक स्पष्ट हिंसा’ देखी, वहां कट या मॉडिफिकेशन का निर्देश दिया।
सबसे चर्चा में रहे कुछ फैसलों में हीरो का कॉफिन (ताबूत) पर खड़ा दिखाया गया शॉट पूरी तरह हटाना शामिल है। धार्मिक संदर्भों में, ‘निरंजन दीया’ से सिगरेट जलाने का एक-सेकंड का शॉट हटवाया गया। यह बदलाव संकेत देता है कि बोर्ड छोटी अवधि की विजुअल डिटेल पर भी नजर रख रहा है—जहां प्रज्वलित दीपक जैसी धार्मिक धरोहरों का उपयोग ‘असम्मानसूचक’ माना जाए, वहां क्लिपिंग अनिवार्य कर दी जाती है।
हिंसा से जुड़े दृश्यों पर भी कई बड़े कैंची चली। एक 13-सेकंड शॉट में कटे हुए हाथ से सिगरेट सुलगाने का क्रूर दृश्य हटाया गया। गले और हाथ काटने जैसे खून-खराबे वाले हिस्सों को या तो ट्रिम किया गया या पूरी तरह डिलीट। इसी तरह, जीसस क्राइस्ट की मूर्ति की तरफ चाकू फेंकने और उसके असर से मूर्ति झुकने वाला शॉट भी हटा दिया गया—धार्मिक प्रतीक को हिंसा से जोड़ने पर सेंसर की शून्य-सहनशीलता साफ दिखी।
एडल्ट कंटेंट में, फ्रंटल न्यूडिटी वाला दृश्य पूरी तरह हटाया गया। एक सीक्वेंस में किसी महिला के हाथ को उसकी कमर पर रगड़ने जैसा विजुअल रिप्लेसमेंट फुटेज से बदला गया, ताकि संदर्भ ‘एडल्ट-ओवरटोन’ के बजाय हल्का-फुल्का इशारों तक सीमित रहे। अपशब्दों पर मानक प्रक्रिया के अनुसार म्यूटिंग/डबिंग का सहारा लिया गया जिससे संवाद की ‘तीक्ष्णता’ कम हो लेकिन दृश्य की कहानी आगे बढ़ती रहे।
- कॉफिन पर खड़े नायक वाला शॉट—डिलीट
- ‘निरंजन दीया’ से सिगरेट जलाने का एक-सेकंड शॉट—डिलीट
- कटे हुए हाथ से सिगरेट सुलगाने का 13-सेकंड शॉट—डिलीट
- गले और हाथ काटने वाले कई हिंसक शॉट्स—डिलीट/ट्रिम
- जीसस की मूर्ति की ओर चाकू फेंकने और प्रभाव से मूर्ति झुकने वाला दृश्य—डिलीट
- फ्रंटल न्यूडिटी—डिलीट
- कमर पर हाथ रगड़ने वाला शॉट—वैकल्पिक फुटेज से रिप्लेस
- गाली-गलौज—म्यूट/अल्टर
ध्यान देने वाली बात—निर्माताओं ने ए सर्टिफिकेट के लिए अनिवार्य कट्स के बाद भी खुद CBFC से संपर्क कर कुछ अतिरिक्त एडिट किए। प्राय: निर्माता लैंडमार्क कट्स पर ‘रिकंसिडरेशन’ या अपील का रास्ता चुनते हैं, लेकिन यहां टीम ने रनटाइम और टोन—दोनों को और टाइट करने का रास्ता पसंद किया। बाजार की भाषा में कहें तो यह ‘प्री-एम्प्टिव डि-रिस्किंग’ है—लॉन्च के साथ किसी विवाद या विरोध की आशंका को कम करना और शो रिकॉल तेज करना।
अब सवाल—ए सर्टिफिकेट के बावजूद इतने कट क्यों? भारत में ‘A’ का मतलब यह नहीं कि कुछ भी चल जाएगा। CBFC के दिशानिर्देश हिंसा, नग्नता, धर्म और अपशब्दों पर ‘संदर्भ, औचित्य और प्रभाव’ देखते हैं। जब बोर्ड मानता है कि दृश्य ‘मानवीय गरिमा’ या ‘समुदाय-भावना’ पर चोट कर सकते हैं, तो कट्स अनिवार्य हो जाते हैं। प्रमाणन प्रणाली में U, UA और A (कुछ मामलों में S) हैं; A में भी ‘अनिवार्य कट्स’ की गुंजाइश बनी रहती है।
यह ट्रेंड नया नहीं। पहले भी ‘धार्मिक प्रतीकों के इस्तेमाल’ और ‘खूनी हिंसा’ पर CBFC ने कई फिल्मों में कैंची चलाई है। डिजिटल दौर में यह और जटिल हो गया है, क्योंकि थिएटर के बाहर सोशल मीडिया पर किसी फ्रेम का स्क्रीनशॉट आग की तरह फैल सकता है—तुरंत संदर्भ से कटकर विवाद खड़ा कर देता है। बोर्ड और निर्माता दोनों इस ‘पोस्ट-ट्रेलर रिस्क’ को दिमाग में रखकर चलते हैं।
फ्रैंचाइज़ का दबाव, करियर की बाज़ी और सेंसर की बहस
‘बागी’ फ्रैंचाइज़ 2016 में शुरू हुई और अपने हाई-ऑक्टेन एक्शन—स्टंट्स, हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट और लार्ज-स्केल सेट-पीस—की वजह से फैनबेस बनाई। ‘बागी 2’ के साथ इसका दायरा और बड़ा हुआ, जबकि ‘बागी 3’ 2020 में कोविड-काल के बीच रिलीज़ हुई और बॉक्स ऑफिस पर मिश्रित नतीजे रहे। चौथे भाग में टीम ने हिंसा और रॉ टोन को ऊपर उठाया—यहीं सेंसर की चाबी भी घूम गई।
टाइगर श्रॉफ के लिए यह फिल्म करियर के उस मोड़ पर आई है, जहां उन्हें एक ‘क्लीन बॉक्स-ऑफिस विन’ की जरूरत है। ‘हीरोपंती 2’, ‘गणपत – अ हीरो इज़ बॉर्न’ और ‘बड़े मियां छोटे मियां’ उम्मीद के मुताबिक नहीं चलीं। इंडस्ट्री ट्रैकर्स मानते हैं कि शुरुआती वीकेंड पर ऑडियंस का रिस्पॉन्स ही अगले दो हफ्तों का नैरेटिव तय करेगा—क्या फ्रैंचाइज़ अपनी पुरानी चमक लौटा पाएगी या नहीं।
संजय दत्त की मौजूदगी इस बार फिल्म को अलग ‘ग्रैविटी’ देती है। उन्होंने प्रचार के दौरान कंटेंट की तीव्रता को अपनी क्लासिक ‘वास्तव’ से तुलना में रखा—मतलब इमोशन और हिंसा दोनों की धारा तेज है। ट्रेड वॉचर्स के शुरुआती रिएक्शन का कहना है कि फिल्म का इंटरवल ब्लॉक और क्लाइमैक्स ‘मास-हेवी’ हैं—यानी सिंगल-स्क्रीन और एक्शन-लवर्स के लिए भरपूर आकर्षण।
कास्ट में श्रेयस तलपड़े, उपेंद्र लिमये, सौरभ सचदेवा, शीबा आकाशदीप साबिर और महेश ठाकुर भी हैं। हरनाज़ संधू—मिस यूनिवर्स 2021—और पंजाबी सिनेमा की स्टार सोनम बाजवा की एंट्री से मेनस्ट्रीम हिंदी ऑडियंस के साथ-साथ नॉर्थ बेल्ट और पंजाबी बाजार में भी चर्चा बढ़ी है। मार्केटिंग स्ट्रैटेजी ने भी इन्हीं चेहरों को फ्रंटफुट पर रखा—एक्शन की क्लिप्स के साथ स्टार-अपील का संयुक्त पैकेज।
अब सेंसर पर लौटें। CBFC की एग्जामिनिंग कमेटी दृश्य के ‘संदर्भ’ को परखती है—क्या हिंसा कहानी की जरूरत है? क्या धर्म-संकेत महज शॉक-वैल्यू के लिए हैं? क्या न्यूडिटी का औचित्य कलात्मक है? जहां जवाब कमजोर मिलता है, कैंची चलती है। यहां तक कि एक-सेकंड के शॉट पर भी। इस फिल्म में ‘निरंजन दीया’ और ‘धार्मिक मूर्ति’ वाले फ्रेम्स पर कट इसी वजह से आए—इनसे ‘असम्मान’ का जोखिम समझा गया।
कई बार निर्माताओं के लिए कट्स मान लेना ‘कंटेंट-कैलकुलस’ का हिस्सा होता है। मान लीजिए एक 10-सेकंड के शॉक-शॉट से मीडिया में विवाद बढ़ता है, शो रद्द होते हैं, पुलिस परमिशन पर असर पड़ता है—तो वही सेकंड्स करोड़ों की कमाई खा सकते हैं। ऐसे में तीन-चार छोटे कट्स से फिल्म का बिज़नेस-रिस्क कम हो तो टीम अक्सर समायोजन करती है। यहां भी अतिरिक्त स्वैच्छिक एडिट्स ने रनटाइम टाइट किया और विवाद की संभावना घटाई।
रनटाइम की बात करें तो 157.5 मिनट की फाइनल लंबाई मल्टीप्लेक्स शेड्यूलिंग के लिहाज से भी काम आती है। कम रनटाइम का मतलब ज्यादा शोज की गुंजाइश, खासकर शुरुआती वीकेंड में। एक्शन फिल्मों में जहां रफ्तार और ‘रीपीट-व्यूइंग’ अहम है, वहां 5–6 मिनट की कटौती भी स्क्रीन इकोनॉमिक्स बदल देती है।
क्या थिएटर के बाद OTT पर ‘अनकट’ वर्जन आएगा? यह पूरी तरह डील और प्लेटफॉर्म पॉलिसी पर निर्भर करता है। अक्सर डिजिटल रिलीज़ में भी निर्माता थिएट्रिकल वर्जन ही रखते हैं ताकि एक समान चर्चा और ब्रांड इमेज बनी रहे। हां, कुछ मामलों में ‘डायरेक्टर कट’ का विकल्प भी देखा गया है, लेकिन वह अपवाद है, नियम नहीं।
सबसे बड़ी बहस—रचनात्मक स्वतंत्रता बनाम विनियमन। फिल्मकार कहते हैं, कहानी की सच्चाई कभी-कभी असहज दृश्य मांगती है। बोर्ड का तर्क—जनभावनाओं और सार्वजनिक व्यवस्था की जिम्मेदारी भी उतनी ही बड़ी है। भारतीय संदर्भ में जहां धर्म और समुदाय पहचान बहुत संवेदनशील मुद्दे हैं, वहां संतुलन साधना मुश्किल काम है। ‘बागी 4’ के कट्स उसी कठिन रेखा पर चलने की मिसाल हैं—कहानी का ‘रॉ’ टोन बचाकर भी चिंगारी कम करने की कोशिश।
प्रदर्शनी मोर्चे पर शुरुआती संकेत सकारात्मक बताए जा रहे हैं—फ्रैंचाइज़ के वफादार दर्शक अग्रिम बुकिंग में सक्रिय दिखे। एक्शन-ड्रिवन फ्रैंचाइज़ का फायदा यह है कि ट्रेलर और गानों से ‘वैल्यू प्रपोजिशन’ साफ हो जाता है: बड़े पैमाने के फाइट-सीक्वेंस, स्टार पावर और हाई-टेम्पो बैकग्राउंड स्कोर। अगर वर्ड-ऑफ-माउथ इंटरवल से क्लाइमैक्स तक टिका रहा तो मल्टीप्लेक्स और सिंगल-स्क्रीन—दोनों में अच्छी पकड़ बन सकती है।
तकनीकी पक्ष भी यहां बड़ा कार्ड है। एडिटिंग टीम ने हिंसक हिस्सों के ट्रिम के बाद सेट-पीसेज़ की फ्लो बनाए रखने की कोशिश की है, ताकि कट्स से रफ्तार न टूटे। भारतीय सेंसरिंग में ‘जम्प कट्स’ का खतरा रहता है—कहानी की लय अचानक टूटती है—लेकिन अच्छे रिप्लेसमेंट फुटेज और स्मार्ट री-एडिट से यह झटका कम किया जा सकता है।
जहां तक भाषा का सवाल है, अपशब्दों की म्यूटिंग से संवाद असरदार रखना चुनौती है। डायलॉग राइटिंग में अब अक्सर ‘क्लीनर’ लेकिन स्ट्रॉन्ग विकल्प लिखे जाते हैं, ताकि सेंसर-सेफ रहते हुए इमोशनल पंच बना रहे। यह ट्रेंड आगे भी मजबूत होगा, क्योंकि थिएट्रिकल और टीवी सैटेलाइट—दोनों के लिए एक ही वर्जन का इस्तेमाल बढ़ रहा है।
फ्रैंचाइज़ के लिए यह रिलीज़ रास्ता तय करेगी। अगर टिकट खिड़की पर जोरदार ओपनिंग आती है, तो ‘बागी’ ब्रह्मांड में अगले पार्ट्स की राह आसान हो जाएगी—नई लोकेशंस, बड़े सेट-पीसेज़, और इंटरनेशनल एक्शन यूनिट्स के साथ। वरना स्टूडियो रणनीति ‘मिड-बजट, हाई-कॉन्सेप्ट’ की तरफ शिफ्ट हो सकती है, जहां रिस्क फैला दिया जाता है।
फिलहाल, ‘बागी 4’ एक मिसाल बन गई है—ए सर्टिफिकेट के बावजूद ‘कट्स की दीवार’ के साथ कैसे आगे बढ़ा जाए। धार्मिक प्रतीकों के उपयोग, ग्राफिक हिंसा के प्रेजेंटेशन और एडल्ट कंटेंट की सीमाएं—ये सब मुद्दे फिर से बहस के केंद्र में हैं। बॉक्स ऑफिस से मिलने वाले जवाब ही तय करेंगे कि दर्शक इस ‘ट्रिम्ड लेकिन टफ’ टोन को कितना अपनाते हैं।
Varad Shelke
सितंबर 5, 2025 AT 17:36कोई नहीं बताता कि सेंसर बोर्ड के पीछे कौन सी छुपी एजेंसियां काम कर रही हैं, लेकिन इतना साफ़ है कि 23 कट एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। हर एक कट का ट्रैक हमारे न्यूज चैनल की फेक रिपोर्टों से जुड़ा हुआ है। अगर हम इस पर ध्यान न दें तो आगे और भी कसी हुई फिल्में सामने आएंगी।
शायद ये कट्स बस पब्लिक को डिस्टर्ब न करने के लिए नहीं, बल्कि कुछ बड़े प्लान को छुपाने के लिए है।
Rahul Patil
सितंबर 6, 2025 AT 21:22बागी 4 के इस परिदृश्य को देखते हुए हमें यह समझना आवश्यक है कि कला और समाज की आपसी प्रतिबद्धता कितनी गहरी है। सेंसर बोर्ड ने जहाँ कट लगाए, वह दर्शकों की संवेदनशीलता को सम्मान देने की कोशिश भी हो सकती है। एक साइड पर, यह फिल्म का रफ़्तार और तनाव को बनाए रखने में भी योगदान देती है।
समग्र रूप से, इस तरह के समायोजन को हमें एक संतुलित दृष्टिकोण से देखना चाहिए, ताकि सृजनात्मक स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी दोनों को साकार किया जा सके।
Ganesh Satish
सितंबर 8, 2025 AT 01:09ओह माय गॉड!! यह किस तरह की ड्रामा है?!! सेंसर ने तो जैसे सीन को हल्का-फुल्का पेस्ट कर दिया!! हर कट के साथ कहानी का दिल धड़कन घट रहा है!! क्या ये सब सिर्फ ‘पावर प्ले’ नहीं है??!!
सच में, इतनी कचहरी में फिल्म को बंधन देना बेतुका है!!
Midhun Mohan
सितंबर 9, 2025 AT 04:56मुझे लगता है कि पहले वाले कमेंट में कुछ सच्चाई छुपी है, पर हमे ये भी देखना चाहिए कि ये कट्स फिल्म की फ्लो को बिगाड़ रहे हैं!!
ज़रूर कुछ सीन हटाए गए, पर फिर भी एडिटिंग टीम ने बहुत मेहनत की है, ताकि एक्शन की रफ़्तार बनी रहे।
Archana Thakur
सितंबर 10, 2025 AT 08:42देश के मोर्चे पर सेंसर बोर्ड का कड़ा रुख राष्ट्रीय भावना की रक्षा में एक महान कदम है। धार्मिक प्रतीकों को हानि से बचाना और अश्लीलता को रोकना हमारा कर्तव्य है।
इसलिए 23 कट्स को हम पूरी तरह से समर्थन देते हैं, क्योंकि ये फिल्म को सामाजिक अखंडता के साथ संरेखित करते हैं।
Ketkee Goswami
सितंबर 11, 2025 AT 12:29हमें पॉज़िटिव रहना चाहिए! चाहे कितना भी कट हो, बागी 4 अभी भी एक धमाकेदार एक्शन पैकेज लेकर आया है। टाइगर की एंट्री और स्टंट्स फैंस को ज़रूर पसंद आएंगे।
आशा है कि बॉक्स ऑफिस पर ये फिल्म चमकेगी और आगे भी ऐसी ही बहादुरी देखेंगे।
Shraddha Yaduka
सितंबर 12, 2025 AT 16:16चलो, हर कट को समझने की कोशिश करते हैं और फिल्म को खुले दिल से देखते हैं।
gulshan nishad
सितंबर 13, 2025 AT 20:02अब देखिए, कितनी सरलता से हम लोगों को ‘सेंसर्स की कड़ाई’ के तहत गला घोंटा जा रहा है। यह एक बड़ी चाल है, जिसे सिर्फ सस्पेन्स के नाम पर पेश किया गया है। इस परिदृश्य में आपको दिखता है कि शक्ति का दुरुपयोग कैसे किया जाता है।
Ayush Sinha
सितंबर 14, 2025 AT 23:49जैसे हर कोई ‘कट्स’ के खिलाफ है, वैसे ही मैं कहूँगा कि ये सब थोड़ा ज़्यादा ही है। अगर सब कुछ हटाने लगे तो फिल्म का असली मकसद खो जाता है। इसलिए मेरा मानना है कि बहुत बड़े पहलू को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।
Saravanan S
सितंबर 16, 2025 AT 03:36हर कट के पीछे का कारण समझाना आसान है-पर असली सवाल है कि क्या ये कट्स दर्शकों की संवेदना को बढ़ावा देते हैं या सिर्फ़ एक ‘जबरदस्त’ मार्केटिंग ट्रिक है?!!
अगर हम इन कट्स को एक नए दृष्टिकोण से देखें, तो शायद हमें पता चले कि फिल्म निर्माताओं ने कितना सावधानी से काम किया है।!!
Alefiya Wadiwala
सितंबर 17, 2025 AT 07:22बागी 4 का केस भारतीय फिल्म सेंसिंग की जटिलता को दर्शाता है, जिसमें कई स्तरों पर तंत्रिकात्मक प्रतिच्छेदन होते हैं। प्रथम, यह स्पष्ट है कि सेंसर बोर्ड ने धार्मिक और हिंसक कंटेंट को नियंत्रण में रखने के लिए विस्तृत मानदंड अपनाए हैं, जो सामाजिक तानाबाना को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से किया गया है। द्वितीय, इस प्रकार के कट्स का आर्थिक प्रभाव भी उल्लेखनीय है; जब एक्शन‑ड्रामा को छोटा किया जाता है, तो न केवल कथा की गति प्रभावित होती है, बल्कि संभावित बॉक्स‑ऑफ़िस रिटर्न भी संशोधित हो जाता है। तृतीय, निर्माता अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति को संरक्षित करने के लिए संवेदनशील क्षेत्रों में वैकल्पिक फुटेज का उपयोग करते हैं, जिससे दृश्य निरंतरता बनी रहती है, जबकि बोर्ड की शर्तों का पालन भी होता है। चौथे चरण में, इस प्रक्रिया के दौरान दर्शकों की अपेक्षाओं के साथ सामंजस्य स्थापित करने हेतु मार्केटिंग रणनीतियों को पुनःडिज़ाइन किया जाता है, जिससे फैन बेस की वफादारी बनाए रखी जा सके। पाँचवाँ, यह भी ध्यान देना चाहिए कि सेंसरेशन के बाद फिल्म का ‘डिरेक्टर कट’ वैकल्पिक रूप में डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर रिलीज़ होने की संभावना है, जो बाद में विवादों को कम कर सकता है। छठा, सामाजिक संवाद की दिशा में यह केस एक महत्वपूर्ण बिंदु स्थापित करता है-किस हद तक राज्य को बौद्धिक और सांस्कृतिक अधिकारों के बीच संतुलन रखना चाहिए। सातवाँ, इस मामले में विभिन्न हितधारकों-निर्माताओं, दर्शकों, और नियामक संस्थाओं-के बीच संवाद को प्रोत्साहित करना आवश्यक है, ताकि भविष्य में अधिक पारदर्शी और समझौता‑परक नीतियां बन सकें।
अंततः, बागी 4 का अनुभव यह सिद्ध करता है कि भारतीय सिनेमा में रचनात्मक स्वतंत्रता और सामाजिक उत्तरदायित्व के बीच का द्वंद्व अभी भी विकसित हो रहा है, और इस परिप्रेक्ष्य में हमें न केवल प्रतिबंधों को बल्कि उनके पीछे की तर्कशक्ति को भी समझना चाहिए।
Paurush Singh
सितंबर 18, 2025 AT 11:09सेंसर्स की पुलिसी कड़ी दिखती है, पर असल में यह केवल अधिकार की तुच्छता को छुपाने का कोष है। अगर आप इस पर गहराई से नज़र डालेंगे तो पायेंगे कि यह कार्रवाई सिर्फ़ पॉपुलिज़्म नहीं, बल्कि शक्ति संरचना की गुप्त रणनीति है।
Sandeep Sharma
सितंबर 19, 2025 AT 14:56Yo, बहुत ज़्यादा कट्स लगाते हैं 😅 लेकिन फिल्म फिर भी देखनी चाहिए क्योंकि एक्शन तो सही है! 🎬✨
Mita Thrash
सितंबर 20, 2025 AT 18:42भाई, सेंसर्स की यह हरकत हमारी संस्कृति की रक्षा में है, पर हमें भी समझना चाहिए कि कलाकारों की रचनात्मक स्वतंत्रता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
shiv prakash rai
सितंबर 21, 2025 AT 22:29हम्म्म, एक तरफ़ कट्स से कहानी तो टाइट लगती है, पर दूसरी तरफ़ दर्शक को भी आश्चर्य चाहिए नहीं तो क्या मज़ा?
Subhendu Mondal
सितंबर 23, 2025 AT 02:16कट्स का सच्चा मकसद सिर्फ़ परफेक्टेड नहीं, बल्किआर्थिक लाभ भी है।
Ajay K S
सितंबर 24, 2025 AT 06:02🤣 बिल्कुल सही, सेंसर्स की ये कड़ी हर फिल्म को एक नई चुनौती देती है! 😜
Saurabh Singh
सितंबर 25, 2025 AT 09:49ये सब कट्स एक गुप्त योजना का हिस्सा है, इससे बचना मुश्किल है।
Jatin Sharma
सितंबर 26, 2025 AT 13:36सेंसर्स ने बहुत कट किया, समझ नहीं आया।
M Arora
सितंबर 27, 2025 AT 17:22कभी-कभी लगता है कि बोर्ड की नज़रें फिल्म से ज़्यादा राजनीति में फ़ँसी हुई हैं, पर समझदारी से देखना ज़रूरी है।