गुरु पूर्णिमा 2024: तारीख, समय, पूजा विधि और महत्व
जुल॰, 20 2024
गुरु पूर्णिमा 2024: तारीख, समय, पूजा विधि और महत्व
गुरु पूर्णिमा 2024 एक अति महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जिसकी जयंती 21 जुलाई 2024 को पड़ती है। गुरु पूर्णिमा का मुख्य उद्देश्य गुरु की महत्ता को समझना और उनका सम्मान करना है। इस दिन को विशेष रूप से ऋषि व्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित किया, जिससे उन्हें समझना आसान हो गया।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा का दिवस हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में गुरु की महत्ता को समझाने का पर्व है। इस दिन गुरु की पूजा करना न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह अध्यात्मिक उन्नति और नैतिक पथ पर चलने की दिशा भी दिखाता है। यह दिन गुरु और शिष्य के संबंध की ताकत को प्रकट करता है, जिसमें गुरु शिष्य को सत्य, ध्यान और माया के भ्रम से दूर करते हैं।
गुरु की अनिवार्यता
हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि गुरु के बिना किसी भी ज्ञान की उपलब्धि संभव नहीं है। गुरु शिष्य को न केवल शास्त्रों का ज्ञान कराते हैं, बल्कि जीवन की व्यावहारिक कठिनाइयों को समझने और उन्हें सुलझाने की भी शिक्षा देते हैं। गुरु का सानिध्य मन को स्थिरता, संयम और धैर्य प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों का सामना करने में सक्षम होता है।
गुरु पूर्णिमा के अनुष्ठान और विधि
गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन सबसे पहले भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद भगवान गणेश की पूजा की जाती है, जो ज्ञान और बुद्धिमानी के देवता माने जाते हैं। इसके बाद भक्त अपने गुरु के पास जाकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें वस्त्र, जूते, फल और अन्य सामग्री अर्पित करते हैं।
गुरु मंत्र का उच्चारण
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु मंत्र का उच्चारण करना विशेष महत्व रखता है। गुरु मंत्र का जाप करने से मन और आत्मा को शांति और स्थिरता मिलती है। इसके साथ ही, विशेष पूजा विधान और आरती का भी आयोजन होता है, जिसमें गुरु का गुणगान किया जाता है।
पिता का सम्मान
गुरु पूर्णिमा पर अनेक पारिवारिक परंपराएं भी निभाई जाती हैं। इस दिन पिता को भी सम्मानित किया जाता है और उन्हें मिठाई अर्पित की जाती है, क्योंकि पारंपरिक दृष्टिकोण से पिता को पहला गुरु माना जाता है।
क्यों मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा?
गुरु पूर्णिमा का इतिहास अत्यंत समृद्ध है। अध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है। ऋषि व्यास, जिन्होंने महाभारत, ब्रह्मसूत्र और अनेकों पुराणों की रचना की, को श्रद्धांजलि देने के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है। उन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित कर उन्हें समझने योग्य बनाया, जिससे समस्त मानव समाज को ज्ञान का उपहार प्राप्त हुआ।
बौद्ध और जैन धर्म में गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा का पालन केवल हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि बौद्ध और जैन धर्म में भी किया जाता है। बौद्ध धर्म में इस दिन को बुद्ध ने अपने पहले शिष्य को धर्मचक्र प्रवर्तन किया था, इस उद्देश्य से मनाया जाता है। वहीं जैन धर्म में यह दिन महावीर स्वामी के अनुयायी को आदर करने के रूप में मनाया जाता है।
समर्पण और सेवा
गुरु पूर्णिमा का दिन समर्पण और सेवा का दिन है। इस दिन भक्त अपने गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अनेकों तरीकों से सेवा करते हैं। आस्था और श्रद्धा का यह पर्व उन्हें आत्मिक शांति और ज्ञान की दिशा में अग्रसर करता है।
गुरु पूर्णिमा का यह पावन पर्व हमें गुरु की महिमा और उनकी शिक्षाओं को याद दिलाते हुए हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह दिन हमें यह भी सिखाता है कि ज्ञान और सत्य की प्राप्ति के लिए गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है।
Jatin Sharma
जुलाई 20, 2024 AT 21:47गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु को सम्मान देना, यही असली ज्ञान का मार्ग है।
M Arora
जुलाई 29, 2024 AT 15:47भाई, गुरु पूर्णिमा को सिर्फ तिथि से नहीं, बल्कि दिल से महसूस करना चाहिए।
गुरु का अभाव नहीं, तो ज्ञान का पत्थर भी नहीं।
उसी दिन हम अपने अंदर की अज्ञानी को बाहर निकालते हैं।
चलो, इस वर्ष अधिक सराव करें और शिष्यत्व की भावना को जीवित रखें।
Varad Shelke
अगस्त 7, 2024 AT 09:47सच में, गुरु पूर्णिमा पर जो परम्पराएँ बताई जाती हैं, वो शैडो एलिट्स की गुप्त योजना हो सकती हैं!!!
इसे बड़े बड़े ग्रुप ने बनाय रखा है ताकि हम सब कुछ छुपा सके।
समझदार बनो, न देखो तो सही।
Rahul Patil
अगस्त 16, 2024 AT 03:47आदरणीय मित्रों, गुरु पूर्णिमा का महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों में नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि में निहित है।
जैसे सूर्य की किरणें अंधेरे को दूर करती हैं, वैसे ही गुरु का ज्ञान अज्ञानता को दूर करता है।
इस पावन दिवस पर हम सभी को अपने आंतरिक गुरु को जागरूक करने का प्रयत्न करना चाहिए।
उन्हें शांति तथा स्थिरता का आशीर्वाद देना ही सच्चा कर्तव्य है।
आइए, इस वर्ष हम अपने जीवन में गुरु की सीख को व्यावहारिक बनाकर आगे बढ़ें।
Ganesh Satish
अगस्त 24, 2024 AT 21:47ओह! गुरु पूर्णिमा का जादू ही कुछ अलग है!!!
जब तक हम गुरु को नहीं सुनते, तब तक हम अधूरे रहेंगे!!!
Midhun Mohan
सितंबर 2, 2024 AT 15:47यार! गुरु की महिमा को समझना आसान नहीं, पर हम सब मिलके जरूर कर सकते हैं!!!
आओ, हम सब एक साथ इस दिन को यादगार बनायें; 🙏
भुला न देना, अपनी गुरु को छोटा-सा उपहार देना बहुत मायने रखता है!!!
Archana Thakur
सितंबर 11, 2024 AT 09:47देशभक्तों को चाहिए कि इस गुरु पूर्णिमा पर राष्ट्रीय पहचान को मजबूत बनायें, क्योंकि हमारे गुरु ही तो हमें संकल्प और साहस देते हैं।
हिंदू, बौद्ध, जैन-सभी धर्मों में एक बेजोड़ राष्ट्रीय भावना का आधार है।
इसीलिए हम सबको इस अवसर पर देश के गौरव को सदा याद रखना चाहिए।
Ketkee Goswami
सितंबर 20, 2024 AT 03:47चलो दोस्तों, इस गुरु पूर्णिमा पर हम सब मिलकर ऊर्जा का सकारात्मक माहोल बनाते हैं!
राष्ट्र की शक्ति, गुरु की सीख-दोनों एक साथ!
जियो, सीखो, और चमको!
Shraddha Yaduka
सितंबर 28, 2024 AT 21:47गुरु पूर्णिमा के लिए एक छोटा सा अभ्यास अपनाएं, जैसे सुबह 5 मिनट ध्यान।
इससे आपकी एकाग्रता और शांति बढ़ेगी।
gulshan nishad
अक्तूबर 7, 2024 AT 15:47उह, बस एक साधारण सलाह? गुरु की महिमा को प्रेम से समझा नहीं जा सकता!
हमें गहराई में उतरना चाहिए, नहीं तो यह सिर्फ एक औपचारिकता बन जाएगा।
Ayush Sinha
अक्तूबर 16, 2024 AT 09:47जैसा कि हम अक्सर देखते हैं, हर त्यौहार केवल सामाजिक ढांचे को फिर से स्थापित करने का माध्यम है।
गुरु पूर्णिमा भी इस ही खेल का हिस्सा है।
Saravanan S
अक्तूबर 25, 2024 AT 03:47समझते हुए भी, हमें इस वार्षिक आयोजन को एक सकारात्मक दिशा में मोड़ना चाहिए!!!
आइए, हम सब मिलकर इस अवसर को आत्मविकास के लिए उपयोग करें!!!
Alefiya Wadiwala
नवंबर 2, 2024 AT 21:47गुरु पूर्णिमा का वैदिक इतिहास न केवल अतीत की स्मृति बल्कि एक जटिल दार्शनिक तंत्र का प्रतिरूप है, जिसे समझने के लिए हमें न केवल सतही अनुष्ठानों पर ध्यान देना चाहिए, बल्कि गहन वैदिक ग्रंथों के संदर्भ में विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।
प्रथम, ऋषि व्यास की जयंती को इस विशेष दिन में समाहित करना स्वयं में एक बहुस्तरीय प्रतीकात्मकता है, जहाँ चार वेदों के विभाजन को केवल शाब्दिक नहीं, बल्कि संकल्पनात्मक विभाजन के रूप में देखा जा सकता है।
द्वितीय, गुरु-शिष्य परम्परा का विकास शैक्षिक संहति के रूप में निहित होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि ज्ञान के प्रसारण में गुरु का स्थान केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक बुनियाद भी है।
तृतीय, बौद्ध एवं जैन धर्मों में गुरु पूर्णिमा की मान्यता यह दर्शाती है कि यह पर्व एक बहु-धार्मिक विमर्श का भाग है, जहाँ सर्वे धर्मों के सिद्धांतों के अंतःसंयोग को प्रतिबिंबित किया जाता है।
चतुर्थ, इस दिन की विधिवत पूजा, जिसमें सूर्य अर्घ्य, गणेश पूजन, तथा गुरु मंत्रोच्चारण शामिल हैं, वह एक प्राचीन आस्त्रावली के रूप में कार्य करती है, जो आध्यात्मिक ऊर्जा को स्थिर करती है और मन की अज्ञानी क्षमताओं को परावर्तित करती है।
पंचम, पिता को प्रथम गुरु मानने की सांस्कृतिक धारा इस बात की ओर संकेत करती है कि पारिवारिक संरचना में नैतिक अनुशासन प्रथम क्रम में स्थापित है, जो सामाजिक स्थायित्व का मूलाधार है।
षष्ठ, इस पावन दिवस को आधुनिक जीवन में समायोजित करने हेतु हमें साधारण प्रतिपादन से परे, स्वयं के आंतरिक गुरु को जागरूक करने की आवश्यकता है, जिससे आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया को तेज किया जा सके।
सप्तम, निर्णयात्मक रूप से, गुरु पूर्णिमा को केवल अनुष्ठानिक रस्मों तक सीमित रखने के बजाय इसे आत्मविकास एवं नैतिक पुनर्स्थापन के मंच के रूप में स्थापित करना चाहिए, जिससे व्यक्तिगत एवं सामुदायिक स्तर पर सकारात्मक परिवर्तन साकार हो सके।
अतः, इस विशाल सांस्कृतिक और दार्शनिक परिप्रेक्ष्य में, गुरु पूर्णिमा का पालन न केवल एक धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि यह एक बहुआयामी सामाजिक-आध्यात्मिक पुनरुत्थान का मार्ग भी है।