आरबीआई गवर्नर ने कुछ एमएफआई और शैडो बैंकों द्वारा ऊंची ब्याज दरों पर चेतावनी दी
जून, 7 2024
आरबीआई गवर्नर की उच्च ब्याज दरों पर चिंता
भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल ही में आयोजित मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में कुछ माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (एमएफआई) और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा छोटे ऋणों पर अत्यधिक ऊंची ब्याज दर वसूलने की प्रथा पर चिंता जताई। इस बैठक में, दास ने स्पष्ट किया कि ये वित्तीय संस्थान छोटे ऋण खंड का शोषण कर रहे हैं और अत्यधिक ब्याज दरें वसूलने के कारण गरीब और वंचित वर्ग पर भारी वित्तीय बोझ डाल रहे हैं।
फाइनेंशियल संस्थानों का शोषण
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस मुद्दे की गंभीरता को समझने के लिए कुछ आंकड़े और तथ्यों को साझा किया। उन्होंने बताया कि छोटे और मध्यम आकार के ऋण प्राप्तकर्ताओं पर वित्तीय संस्थानों द्वारा लगाए गए ब्याज दरें बहुत अधिक हैं, जो कि ग्राहकों के लिए असहनीय हो चुकी हैं। गवर्नर ने यह भी कहा कि ये संस्थान न केवल अत्यधिक ब्याज दरें वसूले रहे हैं, बल्कि वे विभिन्न प्रकार के शुल्क और अन्य छिपे हुए खर्चे भी जोड़ कर ग्राहकों से ज्यादा वसूल रहे हैं।
नियामक निगरानी की आवश्यकता
दास ने इस बात पर जोर दिया कि इन वित्तीय संस्थानों की गतिविधियों पर नियामक निगरानी की सख्त आवश्यकता है। इन मामलों में कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं जैसे कि इन संस्थानों के ब्याज दरों और शुल्कों को नियंत्रित करने वाली नीतियों को लागू करना और उनके संचालन में पारदर्शिता को बढ़ाना।
दास की इस चिंता के पीछे का उद्देश्य छोटे ऋण प्राप्तकर्ताओं को शोषण से बचाना और उन्हें सस्ते और सुलभ क्रेडिट की सुविधा प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की जमा-ऋण प्रथाओं से न केवल ग्राहकों का वित्तीय स्थिति खराब होती है, बल्कि यह पूरे वित्तीय प्रणाली की स्थिरता पर भी असर डाल सकती है।
शाह्दार बैंकों का बढ़ता हस्तक्षेप
दास ने यह भी उल्लेख किया कि शैडो बैंकिंग सेक्टर, जो कि परंपरागत बैंकों के मुकाबले कम नियंत्रित होता है, भी इस समस्या का हिस्सा है। शैडो बैंक अक्सर पर्याप्त नियामक नियंत्रण के अभाव में अपनी गतिविधियाँ संचालित करते हैं और ग्राहकों को ऊंची ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करते हैं। इनके नियमन की भी आवश्यकता है ताकि वे वित्तीय प्रणाली में अस्थिरता न फैला सकें।
छोटे और वंचित वर्गों को वित्तीय सेवाओं की आवश्यकता होती है, लेकिन बिना उचित निगरानी और नियंत्रण के, ये सेवाएं उन्हें मदद करने के बजाय और अधिक समस्याओं में डाल सकती हैं। इसलिए, नियामक निकायों का हस्तक्षेप अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आगे की राह
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इस दिशा में सुधार के लिए सरकार और नियामक निकायों को मिलकर काम करना होगा ताकि सभी वित्तीय संस्थानों की जवाबदेही तय की जा सके। इसके लिए ब्याज दर के सीलिंग को लागू करना, शुल्कों को पारदर्शी बनाना और ग्राहकों के शिकायतों को जल्दी से निपटाना जैसी कई नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है।
इस खबर से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय वित्तीय प्रणाली में स्थिरता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुधारों की आवश्यकता है। इससे न केवल छोटे और वंचित वर्गों को बेहतर वित्तीय सेवाएं मिलेंगी बल्कि समग्र वित्तीय प्रणाली की स्थिरता भी सुनिश्चित हो सकेगी।
| वित्तीय संस्थान | ब्याज दर |
|---|---|
| एमएफआई | 20-30% |
| एनबीएफसी | 15-25% |
Paurush Singh
जून 7, 2024 AT 20:01वित्तीय शोषण का प्रश्न केवल ब्याज दरों तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक असमानता को गहरा करने का साधन है।
जब माइक्रोफाइनेंस संस्थान ऊँची दरें ले लेते हैं, तो कर्ज़दार की स्थिति एक बंधन में बदल जाती है।
ऐसी प्रथा न केवल व्यक्तिगत स्तर पर दर्द देती है, बल्कि पूरे अर्थव्यवस्था की स्थिरता को खतरे में डालती है।
आरबीआई को चाहिए कि वह एक ठोस ब्याज सीमा निर्धारित करे, जिससे अत्यधिक लाभ की इच्छा समाप्त हो सके।
इसके अलावा, लूट‑पैट की तरह छिपे शुल्कों को भी पारदर्शी बनाना अनिवार्य है।
नियामक निगरानी को सख्त करने से संस्थाओं को ऐसी असैनिक रणनीतियों से दूर रखा जा सकता है।
एक साक्ष्य यह है कि उच्च ब्याज दरें दिवालिया होने की संभावना को तीन गुना बढ़ा देती हैं।
इस कारण से गरीब वर्ग की वित्तीय स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाने वाले नाबालिग प्रावधान हटाने चाहिए।
हमें यह याद रखना चाहिए कि ऋण एक अवसर है, दंड नहीं।
यदि हम इस कोष को ठीक से नियत्रित नहीं करेंगे, तो शैडो बैंकों की लहर धीरे‑धीरे मुख्यधारा में घुस जाएगी।
इसके लिए एक राष्ट्रीय स्तर की निगरानी समिति का गठन आवश्यक है।
इस समिति को सभी वित्तीय संस्थानों की रिपोर्टिंग का अधिकार होना चाहिए।
साथ ही, उपभोक्ता शिकायतों के त्वरित समाधान के लिए हेल्पलाइन स्थापित करनी चाहिए।
शिक्षा के माध्यम से जनता को ऋण के जोखिमों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
अंत में, सामाजिक न्याय की दिशा में यह कदम उठाना न केवल आर्थिक बल्कि नैतिक कर्तव्य भी है।
Sandeep Sharma
जून 10, 2024 AT 03:34ब्याज की ये ऊँचाई तो मानो एक अजेय पहाड़ बन गई है; जब तक RBI नहीं लेता सख़्त कदम, छोटे उधारियों का सिरदर्द यहीं रहेगा। 😤💰
Mita Thrash
जून 12, 2024 AT 11:07वित्तीय समावेश को वास्तविक रूप देने हेतु हमें फोकस्ड लेंडिंग फ्रेमवर्क की आवश्यकता है, जहाँ APR के अलावा सभी एडेहॉक चार्जेज़ का एन्ड‑टू‑एन्ड ट्रैकिंग हो।
साथ ही, माइक्रो‑क्रेडिट पोर्टफोलियो में जोखिम‑अडजस्टेड रिटर्न को पारदर्शी बनाना चाहिए, जिससे निवेशक और उपभोक्ता दोनों को स्पष्ट लाभ‑हानि का आकलन हो सके।
इंटर‑सेक्टरल डेटा शेयरिंग प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से नियामक त्वरित एरर डिटेक्शन कर सकेगा, जिससे शैडो लेंडिंग की ग्रे‑ज़ोन को फेरेबोट किया जा सके।
shiv prakash rai
जून 14, 2024 AT 18:41अच्छा, अब देखो, मोटी दरें तो जैसे कुटीर फिल्म के बड़े बॉस की महँगाई वाले किराने की दुकान जैसी हैं-बस खर्च बढ़ाते ही नहीं, बल्कि लोगों को रेत में धकेलते हैं।
Subhendu Mondal
जून 17, 2024 AT 02:14इन बैंकों की दरें तो धोखाबाज़ी से कम नहीं।
Ajay K S
जून 19, 2024 AT 09:47ब्याज की इस बौछार से बचना मुश्किल है, लेकिन नियमों की कसौटी जरूर बनानी चाहिए ;)
Saurabh Singh
जून 21, 2024 AT 17:21वास्तव में ये उच्च दरें सरकार की छुपी हुई योजना का एक हिस्सा हैं।
Jatin Sharma
जून 24, 2024 AT 00:54नियामक को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।
M Arora
जून 26, 2024 AT 08:27ऋण और ब्याज का खेल वही समझता है जो आर्थिक सिद्धान्तों को गहराई से देखता है।
Varad Shelke
जून 28, 2024 AT 16:01सही कहा, ये सब पीछे के साजिशी नेटवर्क का फ़ायदा उठाने की कोशिश है।
Rahul Patil
जून 30, 2024 AT 23:34वित्तीय समावेश को सच्चा बनाने हेतु पारदर्शी शुल्क संरचना अनिवार्य है; यह केवल नियामक दायित्व नहीं, सामाजिक दायित्व भी है।
Ganesh Satish
जुलाई 3, 2024 AT 07:07बिलकुल!! इस ऊँची दर की लहर को रोकने के लिये त्वरित नियामक कदम आवश्यक हैं!!!
Midhun Mohan
जुलाई 5, 2024 AT 14:41इसीलिए हमें एक स्वतंत्र निरीक्षण बोर्ड स्थापित करना चाहिए, जो वास्तविक समय में डेटा एकत्र कर कार्रवाई करे।
Archana Thakur
जुलाई 7, 2024 AT 22:14देश की वित्तीय आत्मनिर्भरता तभी संभव होगी जब हम इस प्रकार के शोषण को राष्ट्रीय सुरक्षा के उल्लंघन के रूप में देखें।